श्री वामन चालीसा

श्री वामन चालीसा

श्री वामन चालीसा

श्री वामन चालीसा भगवान विष्णु के पांचवें अवतार को समर्पित है। वामन भगवान विष्णु के पाँचवे तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए इन्हें दक्षिण भारतमें उपेन्द्र नाम से भी जाना जाता है। वामन अवतार को विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है। जिन्होंने कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया था, कथा कुछ इस प्रकार है

सतयुग में प्रतापी दैत्यराज बलि हुए थे जो विष्णु भक्त भगवान प्रह्रलाद के पौत्र थे। यद्दपि वह एक दैत्य था फिर भी ईश्वर के प्रति निष्ठा थी। यही कारण था कि वह धर्मात्मा एवं सत्यव्रती था। बलि ने अपने शक्ति के बल पर पृथ्वि और स्वर्ग लोक को भी जीत लिया था। जिस कारण से सभी देवी-देवताओं में हडकंप मच गया था।

दैत्य गुरु शुक्राचार्य राजा बलि के लिए एक यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती हैं और असुरों को हराना मुश्किल हो जाता। जब देवताओं के राजा इन्द्र को इस बात का ज्ञान हुआ तब राजा बलि से रक्षा के लिए सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देकर वापस भेज देते है।

दूसरी तरफ देवताओं की दुर्दशा से ऋषि कश्यप की अर्धाग्नि अदिति भी परेशान थी। ऋषी कश्यप के कहने से माता अदिति पयों व्रत का अनुष्ठान करती है, जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता हैं।

भगवान विष्णु अदिति के तपस्या से प्रसन्न होकर वामन रूप में उनके गर्भ से उत्पन्न होने का वरदान दे देते हैं। भाद्रपक्ष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन माता अदिति के गर्भ से जन्म लेकर ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण कर लेते हैं।

वामन अवतार की कथा

एक बार की बात है राजा बलि नर्मदा नदी के किनारे यज्ञ कर रहे थे। तब भगवान विष्णु वामन रूप में यज्ञ स्थल पर पहुंचे। वामनदेव को ब्राह्राण में देखकर राजा बलि ने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया।उन्हें आसन पर बिठाकर बलि विनम्र स्वर में बोला – ब्राह्मणकुमार! आज्ञा दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा करू? धन स्वर्ण, अन्न, भूमि आपको जिस वस्तु की इच्छा हो, नि:संकोच मांग लीजिए। मैं आपकी समस्त इच्छाएँ पूर्ण करूंगा।

तब वामन देव ने राजा बलि से तीन पग भूमि देने का आग्रह किया। दैत्यराज बलि हाथ में गंगाजल लेकर उन्हें तीन पग भूमि देने का संकल्प करने लगे। शुक्राचार्य ने बलि को खूब समझाया ये देवताओ की चाल है, ये श्री हरि विष्णु है। आप संकल्प मत कीजिए। राजा बलि ने सोचा बालक ब्राह्राण के तीन पग होते ही कितने हैं। उन्होंने सोचा कि मैं तीनों लोकों का स्वामी हूं और मेरे लिए तीन पग भूमि कोई बड़ी बात नहीं है।

मगर राजा बलि दैत्य गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए 3 पग भूमि दान करने का वचन दे देते हैं। बलि द्वारा संकल्प करते ही वहाँ एक अद्भुत घटना घटी। भगवान् वामन ने अपने शरीर को इतना विशालकाय कर लिया कि उनका विराट् स्वरूप देखकर ऋषि-मुनि और दैत्य आश्चर्यचकित रह गए।

तब वामन देव ने अपने पहले पग से पृथ्वी और दूसरे पग से आकाश को नाप लिया। अब एक पग नापने के लिए बच गया तब राजा बलि ने कहा कि वामन देव आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख सकते हैं। जब भगवान विष्णु जो कि वामन अवतार में उन्होंने जैसे ही तीसरा पग बलि के सिर पर रखा वह पाताल चला गया।

राजा बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहते हैं। बलि भगवान विष्णु से दिन रात अपने सामने रहने का वर मांग लेते है। श्री विष्णु अपने वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार कर लेते हैं।

इस प्रकार भगवान विष्णु ने वामनावतार लेकर माता अदिति को दिए वरदान को पूर्ण किया, इन्द्र को उनका राज वापस दिलवाया तथा पृथ्वी को असुरों से मुक्त करवाया।

श्री वामन चालीसा में भगवान विष्णु की स्तुति की जाती है और उनसे जीवन में सुख-शांति देने का अनुरोध किया जाता है। श्री वामन चालीसा में चालीस चौपाइयां हैं। श्री वामन चालीसा के पाठ से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं।

दोहा

श्री वामन शरण जो आयके, धरे विवेक का ध्यान ।
श्री वामन प्रभु ध्यान धर, देयो अभय वरदान ॥
संकट मुक्त निक राखियो, हे लक्ष्मीपति करतार ।
चरण शरण दे लीजिये, विष्णु बटुक अवतार ॥

चौपाई

जय जय जय अमन बलबीरा । तीनो लोक तुम्ही रणधीरा ॥१॥
ब्राह्मण गुण रूप धरो जब । टोना भारी नाम पड़ो तब ॥२॥
भाद्रो शुक्ला द्वादशी आयो । वामन बाबा नाम कहाओ ॥३॥
बायें अंग जनेऊ साजे । तीनो लोक में डंका बाजे ॥४॥

सर में कमंडल छत्र विराजे । मस्तक तिलक केसरिया साजे ॥५॥
कमर लंगोटा चरण खड़ाऊँ । वामन महिमा निशदिन गाऊँ ॥६॥
चोटी अदिव्य सदा सिर धारे । दीन दुखी के प्राणं हारे ॥७॥
धरो रूप जब दिव्य विशाला । बलि भयो तब अति कंगाला ॥८॥

रूप देख जब अति विसराला । समझ गया नप है जग सारा ॥९॥
नस बलि ने जब होश संभाला । प्रकट भये तब दीन दयाला ॥१०॥
दिव्य ज्योति बैंकुठ निवासा । वामन नाम में हुआ प्रकाशा ॥११॥
दीपक जो कोई नित्य जलाता । संकट कटे अमर हो जाता ॥१२॥

जो कोई तुम्हरी आरती गाता । पुत्र प्राप्ति पल भर में पाता ॥१३॥
तुम्हरी शरण हे जो आता । सदा सहाय लक्ष्मी माता ॥१४॥
श्री हरी विष्णु के अवतार । कश्यप वंश अदिति दुलारे ॥१५॥
वामन ग्राम से श्री हरी आरी । महिमा न्यारी पूर्ण भारी ॥१६॥

भरे कमंडल अद्भुत नीरा । जहां पर कृपा मिटे सब पीड़ा ॥१७॥
पूरा हुआ ना बलि का सपना । तीनो लोक तीनो अपना ॥१८॥
पूर्ण भारी पल में हो । राक्षस कुल को तुरंत रोऊ ॥१९॥
तुम्हरा वैभव नहीं बखाना । सुर नर मुनि सब गावै ही गाना ॥२०॥

चित दिन ध्यान धरे वा मन को । रोग ऋण ना कोई तन को ॥२१॥
आये वामन द्वारा मन को । सब जन जन और जीवन धन को ॥२२॥
तीनो लोक में महिमा न्यारी । पाताल लोक के हो आभारी ॥२३॥
जो जन नाम रटत हैं तुम्हरा । रखते बाबा उसपर पहरा ॥२४॥

कृष्ण नाम का नाता गहरा । चरण शरण जो तुम्हरी ठहरा ॥२५॥
पंचवटी में शोर निवासा । चारो और तुम हो प्रकाशा ॥२६॥
हाँथ में पोथी सदा विराजा । रंक का किया आचरण पल में राजा ॥२७॥
सम्पति सुमिति तोरे दरवाजे । ढोल निगाडे गाजे बाजे ॥२८॥

केसर चन्दन तुमको साजे । वामन ग्राम में तुम्हे ही विराजे ॥२९॥
रिद्धि सिद्धि के दाता तुम हो । दीन दुःखी के भ्राता तुम हो ॥३०॥
वामन ग्राम के तुम जगपाला । तुम बिन पाये ना कोई निवाला ॥३१॥
तुम्हरी गाये सदा जो शरणा । उनकी इच्छा पूरी करना ॥३२॥

निकट निवास गोमती माता । दुःख दरिद्र को दूर भगाता ॥३३॥
तुमरा गान सदा जो गाता । उनके तुम हो भाग्य विद्याता ॥३४॥
भूत पिशाच नाम सुन भागै । असुर जाति खर-खर-खर खापैं ॥३५॥
वामन महिमा जो जन गाईं । जन्म मरण का को कछु छुटी जाई ॥३६॥

अंत काल बैकुंठ में जाई । दिव्य ज्योति में वहां छिप जाई ॥३७॥
संकट कितना भी गंभीरा । वामन तोड़ सब गंभीरा ॥३८॥
जै जै जै विकट गोसाई । कृपा करो केवट की नाईं ॥३९॥
अंत काल बैकुंठ निवासा । फिर सिंदु में करे विलासा ॥४०॥

दोहा

चरण शरण निज राखियों, अदिति माई के लाल ।
छत सी छाया राखियों, तुलसीदास हरिदास ॥