श्री विनय चालीसा

श्री विनय चालीसा

श्री विनय चालीसा

॥ दोहा ॥
मैं हूँ बुद्धि मलीन अति ।

श्रद्धा भक्ति विहीन ॥
करूँ विनय कछु आपकी ।

हो सब ही विधि दीन ॥

 

॥ चौपाई ॥
जय जय नीब करोली बाबा ।

कृपा करहु आवै सद्भावा ॥
कैसे मैं तव स्तुति बखानू ।

नाम ग्राम कछु मैं नहीं जानूँ ॥
जापे कृपा द्रिष्टि तुम करहु ।

रोग शोक दुःख दारिद हरहु ॥
तुम्हरौ रूप लोग नहीं जानै ।

जापै कृपा करहु सोई भानै ॥
करि दे अर्पन सब तन मन धन ।

पावै सुख अलौकिक सोई जन ॥
दरस परस प्रभु जो तव करई ।

सुख सम्पति तिनके घर भरई ॥
जय जय संत भक्त सुखदायक ।

रिद्धि सिद्धि सब सम्पति दायक ॥
तुम ही विष्णु राम श्री कृष्णा ।

विचरत पूर्ण कारन हित तृष्णा ॥
जय जय जय जय श्री भगवंता ।

तुम हो साक्षात् हनुमंता ॥
कही विभीषण ने जो बानी ।

परम सत्य करि अब मैं मानी ॥
बिनु हरि कृपा मिलहि नहीं संता ।

सो करि कृपा करहि दुःख अंता ॥
सोई भरोस मेरे उर आयो ।

जा दिन प्रभु दर्शन मैं पायो ॥
जो सुमिरै तुमको उर माहि ।

ताकि विपति नष्ट ह्वै जाहि ॥
जय जय जय गुरुदेव हमारे ।

सबहि भाँति हम भये तिहारे ॥
हम पर कृपा शीघ्र अब करहु ।

परम शांति दे दुःख सब हरहु ॥
रोक शोक दुःख सब मिट जावै ।

जपै राम रामहि को ध्यावै ॥
जा विधि होई परम कल्याणा ।

सोई सोई आप देहु वरदाना ॥
सबहि भाँति हरि ही को पूजे ।

राग द्वेष द्वंदन सो जूझे ॥
करै सदा संतन की सेवा ।

तुम सब विधि सब लायक देवा ॥
सब कुछ दे हमको निस्तारो ।

भवसागर से पार उतारो ॥
मैं प्रभु शरण तिहारी आयो ।

सब पुण्यन को फल है पायो ॥
जय जय जय गुरुदेव तुम्हारी ।

बार बार जाऊं बलिहारी ॥
सर्वत्र सदा घर घर की जानो ।

रूखो सूखो ही नित खानो ॥
भेष वस्त्र है सादा ऐसे ।
जाने नहीं कोउ साधू जैसे ॥
ऐसी है प्रभु रहनी तुम्हारी ।

वाणी कहो रहस्यमय भारी ॥
नास्तिक हूँ आस्तिक ह्वै जावै ।

जब स्वामी चेटक दिखलावै ॥
सब ही धर्मन के अनुयायी ।

तुम्हे मनावै शीश झुकाई ॥
नहीं कोउ स्वारथ नहीं कोउ इच्छा ।

वितरण कर देउ भक्तन भिक्षा ॥
केही विधि प्रभु मैं तुम्हे मनाऊँ ।

जासो कृपा-प्रसाद तव पाऊँ ॥
साधु सुजन के तुम रखवारे ।

भक्तन के हो सदा सहारे ॥
दुष्टऊ शरण आनी जब परई ।

पूरण इच्छा उनकी करई ॥
यह संतन करि सहज सुभाऊ ।

सुनी आश्चर्य करई जनि काउ ॥
ऐसी करहु आप अब दाया ।

निर्मल होई जाइ मन और काया ॥
धर्म कर्म में रूचि होई जावे ।

जो जन नित तव स्तुति गावै ॥
आवे सद्गुन तापे भारी ।

सुख सम्पति सोई पावे सारी ॥
होय तासु सब पूरन कामा ।

अंत समय पावै विश्रामा ॥
चारि पदारथ है जग माहि ।

तव कृपा प्रसाद कछु दुर्लभ नाही ॥
त्राहि त्राहि मैं शरण तिहारी ।

हरहु सकल मम विपदा भारी ॥
धन्य धन्य बड़ भाग्य हमारो ।

पावै दरस परस तव न्यारो ॥
कर्महीन अरु बुद्धि विहीना ।

तव प्रसाद कछु वर्णन कीन्हा ॥

॥ दोहा ॥
श्रद्धा के यह पुष्प कछु ।

चरणन धरी सम्हार ॥
कृपासिन्धु गुरुदेव प्रभु ।

करी लीजै स्वीकार ॥