श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत के महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबकेश्वर तहसील के त्र्यंबक शहर में एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो नासिक शहर से 28 किमी और नासिक रोड से 40 किमी दूर है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। त्र्यम्बकेश्‍वर ज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्‍य सभी ज्‍योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं। मन्दिर के अन्दर तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं।

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास ब्रह्मगिरि नमक पर्वत से पुण्यसलिला गोदावरी नदी निकलती है। उत्तर भारत में पापनाशिनी गंगा का जो महत्व है, वही दक्षिण में गोदावरी का है। जिस तरह गंगा अवतरण का श्रेय महातपस्वी भागीरथ जी को है, वैसे ही गोदावरी का प्रवाह ऋषिश्रेष्ठ गौतम जी की महान तपस्या का फल है। मंदिर का स्‍थापत्‍य अद्भुत है। इस मंदिर के पंचक्रोशी में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्‍न होती है। जिन्‍हें भक्‍तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।

इस प्राचीन श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर की भव्य इमारत सिन्धु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मन्दिर के अन्दर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अन्दर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।

दर्शन

पौराणिक कथानक

एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मण की पत्नियां किसी बात को लेकर महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। ऐसे में महर्षि गौतम का अपमान करने के लिए ब्राह्मणों ने भगवान गणेश की कठोर तपस्या की। ब्राह्मणों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। इस पर ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम को तपोवन से बाहर निकालने के लिए कहा। भगवान गणेश ने ब्राह्मणों को ऐसा ना करने के लिए समझाया, लेकिन वह नहीं माने। आखिर में भगवान गणेश को उनकी बात माननी पड़ी।विवश होकर भगवान गणेश ने एक दुर्बल गाय का रूप धारण किया और महर्षि गौतम के खेत में फसल खाने लगे। यह देख महर्षि गौतम ने जैसे ही गाय को भगाने के लिए उसे तिनकों से उसे धीरे से मारा, गाय वहीं मर गई। यह देख सारे ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम पर गोहत्या का आरोप लगाते हुए उन्हें वहां से जाने के लिए कह दिया। इस पर महर्षि गौतम ने उनसे प्रायश्चित करने का उपाय पूछा ।ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम से कहा कि तुम तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा, एक महीने तक व्रत और ब्रह्मगिरि की सौ परिक्रमा करो तो ही तुम्हारी शुद्धि होगी। यदि यह ना कर सको तो गंगा जी को यहां लेकर आओ और उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग की पूजा करो। इसके बाद वापस गंगा में स्नान करके फिर सौ घड़ों से पार्थिव शिवलिंग का जलाभिषेक करो। ब्राह्मणों के बताए अनुसार महर्षि गौतम ने कठोर तपस्या की।महर्षि गौतम की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देते हुए ब्राह्मणों द्वार किए गए छल के बारे में बताया और उन्हें दण्ड देने की बात कही। इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि इनके छल के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए हैं। आप इन्हें माफ़ कर दे और हमेशा के लिए यहाँ विराजमान हो जाए। इसके बाद भगवान शिव वहीँ गौतमी-तट पर त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इसके अलावा महर्षि गौतम द्वारा लाई गई माता गंगा भी पास में ही गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं।

स्थान: श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर नासिक से 30 किलोमीटर और ठाणे से 157 किलोमीटर दूर है। मंदिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता सड़क मार्ग है। निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक रोड रेलवे स्टेशन है जो 39 किलोमीटर दूर है।

प्रशासन: मंदिर का प्रबंधन श्री त्र्यंबकेश्वर देवस्थान ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।