श्रीराम शतनाम स्तोत्र

श्रीराम शतनाम स्तोत्र

श्रीराम शतनाम स्तोत्र

श्रीराम शतनाम स्तोत्र – भगवान शिव ने प्रभु श्रीराम की सौ नामों का द्वारा स्तुति की है, जिसे ‘श्रीराम शतनाम स्तोत्र’ कहते हैं। यह स्तोत्र आनन्द रामायण, पूर्वकाण्ड में दिया गया है। भगवान शिव ने श्रीराम के परम पुण्यमय शतनाम स्तोत्र के पाठ व श्रवण का माहात्म्य पार्वतीजी को बताते हुए कहा–जो मनुष्य दूर्वादल के समान श्यामसुन्दर कमलनयन पीताम्बरधारी भगवान श्रीराम का इन दिव्य नामों से स्तवन करता है वह संसार-बंधन से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त कर लेता है, मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं, लक्ष्मीजी सदैव उसके घर में निवास करती हैं, शत्रु मित्र बन जाते हैं। सभी प्राणी उसके अनुकूल हो जाते हैं, मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

राघवं करुणाकरं भवनाशनं दुरितापहम् ।

माधवं खगगामिनं जलरुपिणं परमेश्वर् ।।

पालकं जनतारकं भवहारकं रिपुमारकम्।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

भूधवं वनमालिनं घनरुपिणं धरणीधरम् ।

श्रीहरिं त्रिगुणात्मकं तुलसीधवं मधुरस्वरम्।।

श्रीकरं शरणप्रदं मधुमारकं व्रजपालकम् ।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

विट्ठलं मथुरास्थितं रजकान्तकं गजमारकम् ।

सन्नुतं बकमारकं वृषघातकं तुरगार्दनम् ।।

नन्दजं वसुदेवजं बलियज्ञगं सुरपालकम् ।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

केशवं कपिवेष्टितं कपिमारकं मृगमर्दिनम्।

सुन्दरं द्विजपालकं दितिजार्दनं दनुजार्दनम्।।

बालकं खरमर्दिनं ऋषिपूजितं मुनिचिन्तितम् ।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

शंकरं जलशायिनं कुशबालकं रथवाहनम्।

सरयूनतं प्रियपुष्पकं प्रियभूसुरं लवबालकम् ।।

श्रीधरं मधुसूदनं भरताग्रजं गरुड़ध्वजम् ।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

गोप्रियं गुरुपुत्रदं वदतां वरं करुणानिधिम्।

भक्तपं जनतोषदं सुरपूजितं श्रुतिभि: स्तुतम् ।।

भुक्तिदं जनमुक्तिदं जनरंजनं नृपनन्दनम् ।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

चिद्घनं चिरजीविनं मणिमालिनं वरदोन्मुखम् ।

श्रीधरं धृतिदायकं बलवर्धनं गतिदायकम् ।

शान्तिदं जनतारकं शरधारिणं गजगामिनम् ।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

शांर्गिणं कमलाननं कमलादृशं पदपंकजम्।

श्यामलं रविभासुरं शशिसौख्यदं करुणार्णवम्।।

सत्पतिं नृपपालकं नृपवन्दितं नृपतिप्रियम्।।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

निर्गुणं सगुणात्मकं नृपमण्डनं मतिवर्धनम्।

अच्युतं पुरुषोत्तमं परमेष्ठिनं स्मितभाषिणम् ।।

ईश्वरं हनुमन्नुतं कमलाधिपं जनसाक्षिणम्।

त्वां भजे जगदीश्वरं नररुपिणं रघुनन्दनम्।।

 

ईश्वरोदितमेतदुत्तममादराच्छतनामकम् ।

य: पठेद् भुवि मानवस्तव भक्तिमास्तपनोदये ।।

त्वतपदं निजबन्धुदारसुतैर्युतश्चिरमेत्य न: ।

सोऽस्तु ते पदसेवने बहुतत्परो मम वाक्यत: ।।

श्रीराम शतनाम स्तोत्र का अर्थ:

  • भगवान शिव कहते हैं – जो (1) रघुवश में उत्पन्न, (2) करुणा की खान, (3) संसार में आवागमन के विनाशक, (4) पापापहारी, (5) लक्ष्मी के पति, (6) पक्षीराज गरुड़ पर सवार होने वाले, (7) जलरूप में स्थित, (8) परमेश्वर, (9) जगत के पालक, (10) भक्तजनों का उद्धार करने वाले, (11) भवबाधा के नाशक, (12) शत्रुओं को संहार करने वाले, नररुपधारी जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो (13) जो पृथ्वी के पति, (14) वनमालाधारी, (15) नीलमेघ सदृश्य शरीर वाले, (16) पृथ्वी को धारण करने वाले, (17) श्रीहरि, (18) सत्-रज-तम—इन तीनों गुणों से समन्वित, (19) तुलसी के पति, (20) मधुर स्वर से सम्पन्न, (21) शोभा का विस्तार करने वाले, (22) शरणदाता, (23) मधु नामक दैत्य का वध करने वाले, (24) व्रज के रक्षक, नररुपधारी जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो (25) विट्ठल रूप से मथुरा में स्थित, (26) रजक (धोबी) के संहारक, (27) गज को मारने वाले, (28) सत्पुरुषों द्वारा संस्तुत, (29) बकासुर, (30) वृषासुर, और (31) अश्वरूपी केशी नामक राक्षस का वध करने वाले, (32) नन्दकुमार, (33) वसुदेव के पुत्र, (34) बलि के यज्ञ में गमन करने वाले, (35) देवताओं के रक्षक, मानवरूपधारी जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो (36) केशव, (37) वानरों द्वारा आवेष्टित, (38) वानर (वाली) का वध करने वाले, (39) मृग रूपी राक्षस (मारीच) के संहारक, (40) शोभाशाली, (41) ब्राह्मणों के रक्षक, (42) दैत्यों और दानवों के वधकर्ता, (43) बालरूपधारी, (44) खर नामक राक्षस का वध करने वाले, (45) ऋषियों द्वारा पूजित, (46) मुनियों द्वारा चिन्तित, नररूपधारी जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो (47) कल्याणकारी तथा जल में शयन करने वाले हैं, (48) कुश जिनके पुत्र हैं, (49) रथ जिनका वाहन है, (50) जो सरयू द्वारा नमस्कृत, (51) पुष्पक विमान के प्रेमी और ब्राह्मणों को प्रिय हैं, (52) लव जिनका पुत्र हैं, (53) जो वक्ष:स्थल पर लक्ष्मी को धारण करने वाले, (54) मधु नामक राक्षस के संहारक और भरत के ज्येष्ठ भ्राता हैं, (55) जिनकी ध्वजा पर गरुड़ का चिह्न विराजमान रहता है, जो मानवरूपधारी जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो (56) गौओं के प्रेमी, (57) यमलोक से गुरुपुत्र को लाकर गुरु को प्रदान करने वाले, (58) वक्ताओं में श्रेष्ठ, (59) दयानिधान, (60) भक्तों के रक्षक, (61) स्वजनों के लिए संतोषदाता, (62) देवताओं द्वारा पूजित, (63) श्रुतियों द्वारा संस्तुत, (64) भोगदाता, (65) स्वजनों के लिए मुक्तिदायक, (66) जनता को प्रसन्न करने वाले राजकुमार, मानवरूपधारी जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो (67) चिद्घनस्वरूप, (68) चिरजीवी, (69) मणियों की माला धारण करने वाले, (70) वर प्रदान करने के लिए उद्यत, (71) सौंदर्यशाली, (72) धैर्य प्रदान करने वाले, (73) बलवर्धक, (74) मोक्षदाता, (75) शान्तिदायक, (76) भक्तों को तारने वाले, (77) बाणधारी, (78) हाथी की सवारी करने वाले, नररूपधारी जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो (79) शांर्गधनुष धारण करने वाले हैं, (80) जिनके चरण और मुख कमल के समान हैं, (81) जो लक्ष्मी की ओर निहारते रहते हैं, (82) जिनके शरीर का रंग श्याम है, (83) जो सूर्य के समान देदीप्यमान, (84) चन्द्रमा सरीखे सुखदाता, (85) दयासागर, (86) श्रेष्ठ स्वामी, (87) राजाओं के रक्षक, (88) राजाओं द्वारा वन्दित, (89) राजाओं के लिए प्रिय, मानवधारी जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो (90) निर्गुण और सगुणरूप, (91) राजाओं में भूषणरूप, (92) बुद्धिवर्धक, (93) अपनी मर्यादा से च्युत न होने वाले, (94) पुरुषों में श्रेष्ठ, (95) ब्रह्मस्वरूप, (96) मुसकराते हुए बोलने वाले, (97) ऐश्वर्यशाली, (98) हनुमान द्वारा संस्तुत, (99) लक्ष्मी के अधीश्वर, (100) लोकसाक्षी, नररूप जगदीश्वर हैं, उन आप रघुनन्दन का मैं भजन करता हूँ।
  • जो मनुष्य भूलोक में सूर्योदय के समय शिवजी द्वारा कहे गए इस उत्तम शतनाम नामक स्तोत्र का श्रद्धा सहित पाठ करेगा, उसकी श्रीराम के चरणों में प्रीति हो जाएगी और वह मेरे कथनानुसार अपने बन्धु, स्त्री और पुत्रों के साथ मेरे लोक में आकर चिरकाल तक आपके चरणों की सेवा में दृढ़तापूर्वक तत्पर हो जाएगा।