श्री साईं चालीसा पाठ
श्री साईं चालीसा पाठ
शिर्डी साईं बाबा कहते है बाबा बहुत सरल स्वभाव के थे। बाबा की यही सरलता लोगो को बहुत आकर्षित करती थी और बाबा सबका दिल जीत लेते थे। साईं बाबा अपने भक्तों के सभी कष्टों को स्वयं के ऊपर लेकर उनका जीवन खुशियों से भर देते हैं।
।। दोहा ।।
माथ नाय श्री गुरू चरण, बिनवऊं सिद्ध गणेश ।
बरनऊं सांई बिसद जस, सुमिरत मिटहिं कलेश ॥
चरण-कमल महिं शरण दो, बाबा सांई नाथ ।
भक्तबछल करूणायतन, मैं सब भांति अनाथ ॥
।। चौपाई।।
जय समर्थ सांई सरवेश्वर । जय दत्तात्रय जय अखिलेश्वर ॥
जय कृपालु हे कृष्ण कन्हाई । पढरपुर के बिट्ठल सांई ॥
रामचन्द्र जी के अवतारा । तिंहू लोक जस को विस्तारा ॥
पावन परम चरित्र तिहारे । तीन ताप सो तुरत निवारे ॥
उर धारिअ सांई जस पावन | कलि-मल-हरन सकल भय तारन ॥
सांई सरन सहज गति आवे । संसृति – सागर सबहि सुखावे ॥
दुखित भक्त पर सांई दयालु । बिनु कारण उपकारि कृपालु ॥
हरिणाकश्यपु कलिजुग क्लेशा । श्री सांई नरकेहरि वेशा ॥
जन प्रहलाद त्रास को टारो । विपद-निसाचर उदर बिदारो ॥
दैहिक दैविक भौतिक तापा । सांई सब मेटे संतापा ॥
अष्ट सिद्धि, नवनिधि तव चेरी । तदपि न तृष्णा वैभव केरी ॥
शिव विभूति खट्वांग विभूति । ब्याल, कपाल, गंग अरू बूटी ॥
आसन टाट धरी तन कफानी। सांई साधी माया नटनी ॥
सांई शिव संपति के दाता । आत्म-क्रीड परमानन्द राता ॥
स्वात्माराम विषय नहीं भावे । मुक्त-हस्त वैभव बरसावे ॥
ज्ञान, मान के अवढर दानी। अपनायो अति नीचहि प्रानी ॥
भूत, भविष्य काल-गीत-स्वामी । योगेश्वर अव्यक्त अनामी ॥
चरण-धूलि जिन सीसा धरी है। सांई तिन पर दया करी है ॥
जिन विभूति को कियो प्रयोग । मिटे तुरत सब जग के रोगा ॥
कृपा दृष्टि जब सांई निहारे । गूंगा ज्ञान अगम्य उचारे ॥
दिव्य तेज मुख सदा बिराजा । सुराधीश लख वैभव लाजा ॥
जुड़ा द्वारकामाई समाजू। शिरडी पावन तीरथ राजू ॥
सांई संगम जहां बुलायो । पाप-पुंज फल माहिं नसायो ॥
भक्त -हेतु नानां तनु धारी। सांई महिमा अमित तुम्हारी ॥
कलिमल-विपट कुठारी सांई । भसूत- हनन कपि-कुंजर नाई ॥
करूणाकर तुम सौख्या लुटाओ। जन का सुख निज सीस चढ़ायो ॥
कृपा तुम्हारी अनन्त अपारा। गगन सदृश्य व्यापक विस्तारा ॥
दया- सिंधु तुम अगम अगाधा । जन को सरल सुगम निर्बाधा ॥
कल्प वृक्ष शीतलतादायी । चिंतामणि चिंताहर सांई ॥
कामधेनु अभिमत फलदाता । सिद्धि-ऋद्धि, सुख, वैभव दाता ॥
तुम उदार सीतापति जैसे । अपनायो जिन चितव अनैसे ॥
बिसर गयो जन तुम नहिं भूले। मो पर सदा रहहु अनुकूले ॥
प्रनवउं सांई नमामि नमामी । मैं सकाम तुम सदा अकामी ॥
शरण तिहारी लाज निभाओ । गहो बांह भव पार लगाओ ॥
सुमिरत सांई नाम तिहारो । सारद आई विरद संभारो ॥
श्रद्धा उर धर सांई जपै नित। निर्मल मति अति शांत होय चित ॥
सांई सनाथ किये अगनित जन । दे दी सद्गति संत परमधन ॥
पारब्रह्म हे – नित्य अगोचर । कदऊं भक्त हेतु दृग्गोचर ॥
बंदउं पुनि-पुनि सांई नाथा । करहु कृपा धर सिर पर हाथा ॥
।। दोहा ।।
चालीसा यह नित पढ़े, जो श्रद्धा उर आनि । पाइ पदारथ चारिहौं, सांई करै कल्यान ॥
भक्त-हृदय निर्मल गगन, सांई चन्द्र समान । विकसित भक्ति-कुमोदिनी, सदा रहउ अम्लान ॥