बृहस्पति कवच

बृहस्पति कवच

बृहस्पति कवच

बृहस्पति कवच अमोघ शक्ति-संपन्न स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ देवगुरु बृहस्पति को प्रसन्न करने वाला माना गया है। महाभारत की कथा के अनुसार देवताओं के गुरु बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं तथा देवों के पुरोहित हैं। जब गुरु ग्रह शुभ होगा तब मनुष्य को समस्त तरह की ऊँचाई प्रदान करता है, तब मनुष्य को अच्छे कार्य को करने के लिए एवं ज्ञान के क्षेत्र में बढ़ोतरी करता है। गुरु का दूसरा नाम बृहस्पति है, जो कि भृगु ऋषि के पुत्र एवं देवताओं के गुरुदेव बृहस्पति जी है। बृहस्पति जी सबका भला करने वाले होते है।

अस्य श्रीबृहस्पतिकवचस्तोत्रमंत्रस्य ईश्वरऋषिः।
अनुष्टुप् छंदः। गुरुर्देवता। गं बीजं श्रीशक्तिः।
क्लीं कीलकम्। गुरुपीडोपशमनार्थं जपे विनियोगः ॥

अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञम् सुर पूजितम्।
अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥१॥

बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः।
कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मे अभीष्ठदायकः॥२॥

जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः।
मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवतागुरुः॥३॥

भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः।
स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः॥४॥

नाभिं केवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः।
कटिं पातु जगवंद्य ऊरू मे पातु वाक्पतिः॥५॥

जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा।
अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः ॥६॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।
सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥७॥

॥ इति श्रीब्रह्मयामलोक्तं बृहस्पतिकवचं संपूर्णम् ॥