श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का भगवन शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में दसवां स्थान है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रमाणिक रूप से कहाँ स्थित है, यह विद्वानों के दावे – प्रतिदावे चलते रहने के कारण कहना आसान नहीं है, फिर भी गुजरात राज्य में गोमती द्वारका के बीच दारूकावन क्षेत्र में इसके प्रामाणिक स्थान होने की मान्यता अधिक है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग होने के दावे जिन दी अन्य स्थानों पर किए जाते हैं, उनमें से एक स्थान महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के औंधा तालुका में स्थित है। दूसरा स्थान उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा से सत्रह मील दूर जोगेश्वर नामक तीर्थ बताया जाता है। यहाँ उतर वृंदावन आश्रम के पास जोगेश्वर नाम का एक पुराना मंदिर है। इससे डेढ़ मील की उतराई पर देवदार के सघन वृक्षों के मध्य नदी के तट पर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग बताया जाता है। स्कंध पुराण में इन्हीं नागेश लिंग का वर्णन एवं महात्म्य वर्णित है। इस ज्योतिर्लिंग को रूद्र संहिता में दारकावने नागेश के नाम से भी जाना जाता है।
यह ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात राज्य में द्वारकापुरी से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। द्वारकापुरी में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर में भगवान शिव की एक बहुत बड़ी ध्यान मुद्रा में विशाल प्रतिमा बनाई गई है। जिसकी वजह से यह मंदिर 3 किलोमीटर दूर से ही दिखाई देने लगता है। भगवान भोलेनाथ की मूर्ति करीब 80 फीट ऊंची और 25 फीट चौड़ी है। इस मंदिर का मुख्य द्वार अत्यंत साधारण और सुंदर बनाया गया है।
शिव पुराण में गुजरात राज्य के भीतर ही दारूकावन क्षेत्र में स्थित ज्योतिर्लिंग को ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति में भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को दारूकावन क्षेत्र में ही वर्णित किया गया है। महात्म्य के अनुसार जो आदरपूर्वक इस शिवलिंग की उत्पत्ति एवं महात्म्य को सुनेगा और इसके दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों को भोगता हुआ अंततः परमपद को प्राप्त होगा।
भगवान शिव जी के इस दसवीं ज्योतिर्लिंग का निर्माण कार्य अत्यंत अद्भुत तथा सौंदर्यकरण विधि से करवाया गया है। नागेश्वर मंदिर के मुख्य गर्भ गृह के निचले स्तर पर भगवान शिव जी के इस ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के ऊपर भगवान शिव जी का एक चांदी का बड़ा नाग स्थापित किया गया है। इतना ही नहीं इस अद्भुत ज्योतिर्लिंग के पीछे ही माता पार्वती की प्रतिमा की स्थापना भी की गई है। इस ज्योतिर्लिंग का मंदिर अत्यंत अद्भुत सौंदर्य पूर्वक तरीके से बनाया गया है। कहा जाता है, कि जिन श्रद्धालुओं को ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करना है वहां के पुजारियों से अनुरोध करके सफेद धोती पहनकर अभिषेक करवाते हैं।
दर्शन
धार्मिक पुराणों के अनुसार, सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान् शिव का अनन्य भक्त था। वह निरन्तर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था। अपने सारे कार्य वह भगवान् शिव को अर्पित करके करता था। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था उसे भगवान् शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरन्तर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे।
एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान् शिव की पूजा-आराधना करने लगा।
अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा। सुप्रिय उस समय भगवान् शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- ‘अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन- से उपद्रव और षड्यन्त्र करने की बातें सोच रहा है?’ उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।
वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान् शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान् शिवजी इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान् शंकरजी तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।
उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान् शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा। बाद में इस स्थान पर एक बडे आमर्दक सरोवर का निर्माण हुआ और ज्योतिर्लिंग उस सरोवर में समाहित हो गया।
पांडव कालीन कथा
जब द्युत के खेल में कौरवों द्वारा पांचों पांडवों को पराजित किया गया था, तो द्यूत की शर्तों के अनुसार पांडवों को 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की सजा सुनाई गई थी। इस बीच, पांडवों ने पूरे भारत में भ्रमण किया। घूमते-घूमते वे इस दारुकवन में आ गए और इस स्थान पर उनके साथ एक गाय भी थी, वह गाय प्रतिदिन सरोवर में उतरकर दूध देती थी। एक बार भीम ने यह देखा और अगले दिन वह गाय का पीछा करते हुए सरोवर में उतर गया और उसने भगवान महादेव को देखा तो उसने देखा कि गाय हर दिन शिवलिंग को दुध छोड रही थी। तब पांचों पांडवों ने उस सरोवर को नष्ट करने का निश्चय किया। और वीर भीम ने अपनी गदा से उस सरोवर के चारों ओर पर प्रहार किया और सभी ने महादेव के इस शिवलिंग दर्शन किये। श्री कृष्ण ने उन्हें उस शिवलिंग के बारे में बताया और कहा यह शिवलिंग कोई साधारण नही हे यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है। तब पांचों पांडवों ने उस स्थान पर भूतल पर स्थित ज्योतिर्लिंग का भव्य अखंड पत्थर का मंदिर बनवाया।
स्थान: नागेश्वर मंदिर गुजरात के द्वारका शहर से 18 किमी दूर है। पोरबंदर (107 किमी) और जामनगर (126 किमी) द्वारका के निकटतम हवाई अड्डे हैं। यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय नवंबर और फरवरी के बीच और शिवरात्रि के दौरान है, जिसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।