श्री चामुण्डा देवी
श्री चामुण्डा देवी
श्री चामुण्डा देवी का मंदिर जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। वर्तमान में उत्तर भारत की नौ देवियों में चामुण्डा देवी का दुसरा दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
श्री चामुंडा जी माता मंदिर
चामुंडा देवी मंदिर बनेर नदी के तट पर स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह प्राचीन मंदिर 16वीं शताब्दी का है। यह मंदिर देवी दुर्गा के अवतार चामुंडा देवी को समर्पित है। चामुंडा शब्द दो शब्दों चण्ड और मुण्ड से मिलकर बना है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी काली ने प्राचीन समय में इस स्थान पर दो कुख्यात राक्षसों चण्ड और मुण्ड को एक भयंकर युद्ध में मार डाला था। इसलिए, देवी को चामुंडा के रूप में जाना और पूजा जाता है। जिसका वर्णन मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत दुर्गासप्तशती के सातवें अध्याय के सत्ताईसवें श्लोक में किया गया है –
यस्माच्चण्डं च मुण्डं च गृहीत्वा त्वमुपागता |
चामुण्डेति ततो लोके ख्याता देवि भविष्यसि ||
दूर्गा सप्तशती में माता के नाम की उत्पत्ति कथा वर्णित है। हजारों वर्ष पूर्व धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो का राज था। उनके द्वारा देवताओं को युद्ध में परास्त कर दिया गया जिसके फलस्वरूप देवताओं ने देवी दूर्गा कि आराधना की और देवी दूर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यो से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात माता दुर्गा ने दो रूप धारण किये एक माता महाकाली का और दूसरा माता अम्बे का। माता महाकाली जग में विचरने लगी और माता अम्बे हिमालय में रहने लगी। तभी वहाँ चण्ड और मुण्ड आए वहाँ। देखकर देवी अम्बे को मोहित हुए और कहा दैत्यराज से आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्न सुशोभित है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ ने अपना एक दूत माता अम्बे के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ तीनो लोको के राजा है और वह तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता अम्बे के पास गया और शुमभ द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ बलशाली है परन्तु मैं एक प्रण ले चुकी हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। यह सारी बाते दूत ने शुम्भ को बताई तो वह माता के वचन सुन क्रोधित हो गया। तभी उसने द्रुमलोचन सेनापति को सेना लेकर माता के पास उन्हे लाने भेजा। जब उसके सेनापति ने माता को कहा कि हमारे साथ चलो हमारे स्वामी के पास नहीं तो तुम्हारे गर्व का नाश कर दूंगा। माता के बिना युद्ध किये जाने से मना किया तो उन्होंने मैया पर कई अस्त्र शस्त्र बरसाए पर माता को कोई हानि नहीं पहुंचा सके मैया ने भी बदले कई तीर बरसाए सेना पर और उनके सिंह ने भी कई असुरों का संहार कर दिया। अपनी सेना का यूँ संहार का सुनकर शुम्भ को क्रोध आया और चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा,रक्तबीज के साथ और कहा कि उसके सिंह को मारकर माता को जीवित या मृत हमारे सामने लाओ। चण्ड और मुण्ड माता के पास गये और उन्हे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना महाकाली का रूप धारण कर लिया और असुरो के शीश काटकर अपनी मुण्डो की माला में परोए और सभी असुरी सेना के टुकड़े टुकड़े कर दिये। फिर जब माता महाकाली माता अम्बे के पास लौटी तो उन्होंने कहा कि आज से चामुंडा नाम तेरा हुआ विख्यात और घर घर में होवेगा तेरे नाम का जाप।
दर्शन
मंदिर में चामुंडा देवी की पवित्र छवि है। मंदिर के एक कोने में देवी के चरणों के साथ छोटा पत्थर देखा जा सकता है। मुख्य मंदिर के अतिरिक्त, एक संगमरमर की सीढ़ी है जो शिव लिंग के साथ भगवान शिव की गुफा तक जाती है। चामुंडा देवी मंदिर को शिव और शक्ति का निवास माना जाता है। इसी कारण से इसे चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के रूप में जाना जाता है।
पहले मंदिर एक दुर्गम स्थान पर स्थित था जहाँ पहुँचना कठिन था इसलिए इसे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया। राजा और एक ब्राह्मण पुजारी ने 17वीं शताब्दी में मंदिर को आसानी से सुलभ स्थान पर स्थानांतरित करने की अनुमति के लिए देवी से प्रार्थना की। एक सपने में, देवी ने पुजारी को दर्शन दिए और अपनी सहमति दी। उसने मूर्ति को पुनः प्राप्त करने और मंदिर बनाने के लिए वर्तमान मंदिर स्थल पर खुदाई करने का निर्देश दिया। पुजारी ने स्वप्न के बारे में राजा को बताया जिसने अपने आदमियों को मूर्ति लाने के लिए भेजा। आदमियों को मूर्ति तो मिल गयी, लेकिन वे उसे उठा नहीं सके। फिर से, देवी प्रकट हुईं और उन्होंने पुजारी से कहा कि वे लोग मूर्ति को नहीं उठा सकते क्योंकि उन्होंने इसे एक साधारण पत्थर के रूप में लिया था। उन्होंने पुजारी को निर्देश दिया कि वह प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर ले। नए वस्त्र धारण करने के बाद पुजारी को श्रद्धापूर्वक उस स्थान पर जाना चाहिए। पुजारी ने ऐसा ही किया और वह मूर्ति को आसानी से उठा सका। उन्होंने मूर्ति को उसके वर्तमान स्थान पर रखा और उसी समय से यहाँ देवी की पूजा की जाती है।
मंदिर परिसर धौलाधार, वनेर खड्ड और डाढ़ के सुंदर दृश्यों के साथ एक रमणीय स्थान है। मुख्य मंदिर के किनारों पर भगवान भैरव और भगवान हनुमान की छवियाँ हैं। इस स्थान पर एक सुंदर स्नान घाट और घाट से जुड़ने वाले पुल के पार एक छोटा-सा मंदिर भी है। धौलाधार पर्वतमाला में लगभग 16 कि. मी. की चढ़ाई प्राचीन चामुंडा मंदिर के मूल स्थल का स्थान है।श्री चामुण्डा जी का वाहन शव है, इसलिए इन्हे शववाहिनी कहा गया है। एक प्राचीन परम्परा के अनुसार मंदिर के समीप महा शमशान भूमि में प्रतिदिन एक शव का दहन होता है। इस मंदिर से ।2 कि. मी. की दूरी से चारों ओर स्थित गाँवो के लोग मृतकों के मोक्ष हेतु उनका शवदहन संस्कार यहीं पर करते हैं ।
मंदिर का समय
| गर्मी | सर्दी |
मंदिर खुलने का समय | 5:00 AM | 6:00 AM |
प्रात आरती | 8:00 – 8:45 AM | 8:00 – 8:45 AM |
भोग | 12:00 – 1:00 PM | 12:00 – 1:00 PM |
संध्या आरती | 7:10 – 7:50 PM | 7:10 – 7:50 PM |
मंदिर बंद होने का समय | 10:00 PM | 9:00 PM |
लंगर की सुविधा: मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रतिदिन दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक और शाम 7:00 बजे से रात 9:00 बजे तक तत्कालीन उपस्थित समस्त भक्तों को मुफ्त भोजन परोसा जाता है। यह लंगर व्यवस्था मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के सहयोग से चलती है। इसके अतिरिक्त , नवरात्रि मेलों के दौरान सुबह के नाश्ते से लेकर रात के भोजन तक लंगर की सुविधा प्रदान की जाती है।
संस्कृत महाविद्यालय: श्री चामुण्डा नन्दिकेश्वर मन्दिर न्यास के तत्वाधान से त्रिगर्त संस्कृत महाविद्यालय का संचालन किया जा रहा है,जिसमें कि छात्रों को शास्त्री व कर्मकाण्ड की शिक्षा निःशुल्क प्रदान की जाती है। यह संस्कृत महाविद्यालय वर्ष -1972 ई. से निरंतर संचालित किया जा रहा है इस विद्यालय से शिक्षित हुए असंख्य छात्र राजकीय व गैर राजकीय क्षेत्रों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं ।
स्थान: चामुण्डा देवी धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ और ज्वालामुखी से 55 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। यहां से आप अपने निजी वाहनो या किराए के वाहनो से मंदिर तक जा सकते हैं।
प्रशासन: मंदिर प्रशासन मंदिर समिति के अधीन है।
आधिकारिक वेबसाइट: https://kangratemples.hp.gov.in/hi/shri-chamunda-mata-temple/#about-temple
दर्शन पर्ची: https://kangratemples.hp.gov.in/hi/shri-chamunda-mata-temple/#yatra-parch