श्री सूर्य अष्टकम

श्री सूर्य अष्टकम

श्री सूर्य अष्टकम

सूर्य अष्टकम प्रसिद्धि पाने और जीवन में समृद्ध होने के लिए सबसे अच्छे भजनों में से एक है। शिव द्वारा कहा गया है – सूर्य अष्टकम के दैनिक पाठ से ग्रह-पीड़ा (ग्रहों की चाल के कारण होने वाली समस्याएं) के कारण होने वाली समस्याएं दूर हो जाती हैं, वह पुत्रहीन व्यक्ति को संतान प्राप्त करता है, और गरीब धन से समृद्ध हो जाता है।

श्री सूर्य अष्टकम 
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोSस्तु ते ॥1॥

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥2॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥3॥

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥4॥

बृंहितं तेज:पु़ञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥6॥

तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज:प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥7॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥

इति श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम् ।

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥

अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ॥

स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥

अर्थ:

  • हे आदिदेव भास्कर ! आपको प्रणाम है, आप मुझपर प्रसन्न हों, हे दिवाकर ! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर ! आपको प्रणाम है ॥ 1 ॥
  • सात घोड़ोंवाले रथपर आरूढ़, हाथमें श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यपकुमार सूर्यको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ 2 ॥
  • लोहितवर्ण रथारूढ़ सर्वलोकपितामह महापापहारी सूर्यदेवको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ 3 ॥
  • जो त्रिगुणमय ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप हैं, उन महापापहारी महान् वीर सूर्यदेवको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ 4 ॥
  • जो बढ़े हुए तेजके पुञ्ज हैं और वायु तथा आकाशस्वरूप हैं, उन समस्त लोकोंके अधिपति सूर्यको मैं प्रणाम करता हूँ॥ 5 ॥
  • जो बन्धूक (दुपहरिया) के पुष्पसमान रक्तवर्ण और हार तथा कुण्डलोंसे विभूषित हैं, उन एक चक्रधारी सूर्यदेवको मैं प्रणाम करता हूँ॥ 6 ॥
  • महान् तेजके प्रकाशक, जगत्के कर्ता, महापापहारी उन सूर्य भगवान्‌को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ 7 ॥
  • उन सूर्यदेवको, जो जगत्के नायक हैं, ज्ञान, विज्ञान तथा मोक्ष को देते  हैं, साथ ही जो बड़े-बड़े पापों को भी हर लेते हैं, मैं प्रणाम करता हूँ ॥ 8 ॥