श्री चिंतपूर्णी आरती
श्री चिंतपूर्णी आरती
श्री चिंतपूर्णी आरती माता चिंतपूर्णी को समर्पित है। चिंतपूर्णी माँ को छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है| यह माता भगवती छिन्नमस्ता देवी का प्राचीन मंदिर है। सनातम धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक, श्री मार्कंडेय पुराण के अनुसार, सभी असुरों के वध के बाद और बड़े युद्ध में जीत के बाद, माँ भगवती की दो ‘सहयोगिनियाँ’, जया और विजया, जिन्होंने विभिन्न असुरों को मारकर उनका खून पी लिया था। अभी भी और खून के प्यासे थे. इसलिए माँ ने अपना सिर काटकर अपने रक्त से अपनी सहयोगिनियों की प्यास बुझाई। तब से, माँ भगवती के इस रूप को माँ छिन्नमस्तिका या माता छिन्नमस्ता कहा जाता है।
पुराने ग्रंथों, पुराणों और अन्य धार्मिक पुस्तकों के अनुसार, यह भी उल्लेख किया गया है कि माँ छिन्नमस्तिका के मंदिर की रक्षा भगवान रुद्र महादेव द्वारा की जाएगी। इसलिए इस स्थान का वह मंदिर होने का सटीक तर्क है। इसके चारों तरफ महादेव के मंदिर हैं
पूर्व – कालेश्वर महादेव मंदिर
पश्चिम- नरहना महादेव मंदिर
उत्तर- मुच्छकुंद महादेव मंदिर
दक्षिण- शिव बाड़ी मंदिर
इसलिए इस मंदिर को मां छिन्नमस्तिका देवी धाम या माता छिन्नमस्ता मंदिर घोषित किया गया।
इसके अलावा, पंडित माई दास माँ छिन्नमस्ता के एक प्रसिद्ध भक्त थे और उनकी तब तक पूजा करते थे जब तक कि एक दिन माँ ने उन्हें अपने दर्शन नहीं दे दिये। हालाँकि इस स्थान को छबरोह कहा जाता था, लेकिन जब से माँ ने आकर पंडित माई दास को उनके सभी तनावों से मुक्त किया, तब से यह स्थान चिंतपूर्णी नाम से अधिक लोकप्रिय हो गया।
श्री चिंतपूर्णी आरती करने से आपकी सभी बाधाएं दूर हो जाती है| माँ चिंतपूर्णी को भगवती दुर्गा का ही स्वरूप माना गया है| यदि आप श्री चिंतपूर्णी आरती करते है तो आप चिंताओं से मुक्त हो जाते है और आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती है| कभी भी माँ अपने भक्तों को कष्टों में नहीं रहने देती हैं। माँ की कृपा से सुखमय जीवन की प्राप्ति होती है| चिंतपूर्णी में सुबह गाई जाने वाली आरती इस प्रकार है:-
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता । सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी । [खड्ग खप्पर धारी]
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।