माता महागौरी देवी कवच
माता महागौरी देवी कवच
माता महागौरी देवी कवच में माँ महागौरी की स्तुति की गई है। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि राहु ग्रह देवी महागौरी द्वारा शासित है। महागौरी का अर्थ है, वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। महागौरी करुणा, पवित्रता और शांति की देवी हैं।महागौरी के गोरे रंग की तुलना शंख, चंद्रमा और चमेली के फूलों की सफेदी से की जाती है। (‘महा’ का अर्थ है महान और ‘गौरी’ का अर्थ सफेद है)। सफेद वृषभ (बैल) पर विराजमान देवी महागौरी को तीन आंखों और चार भुजाओं के साथ चित्रित किया गया है। वह एक दाहिने हाथ में त्रिशूल रखती है और दूसरे दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती है। वह एक बाएं हाथ में डमरू को सुशोभित करती है और दूसरे बाएं हाथ को वरद मुद्रा में रखती है।
माँ महागौरी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। माता पार्वती निराहार रहकर और निर्जल रहकर वर्षों तक पहाड़ों में बिना धूप, ठण्ड़ और वर्षा की परवाह किये निरंतर तपस्या में लीन रही।
इतने वर्षों तक कठोर तपस्या में लीन रहने के कारण धूप-धूल-मिट्टी से उनका रंग काला पड़ गया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने उन्हे पत्नी रूप में स्वीकार करने का वचन दिया। फिर शिव जी ने देवी पार्वती को पवित्र गंगाजल से स्नान कराया। गंगा के पवित्र जल से स्नान करने के बाद देवी पार्वती अत्यंत गोरी हो गई। इसलिये उन्हे महागौरी के नाम से भी जाना जाता हैं।
कवच
ॐकारः पातु शीर्षो माँ, हीं बीजम् माँ, हृदयो।
क्लीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटम् कर्णो हुं बीजम् पातु महागौरी माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा माँ सर्ववदनो॥